धारा ३७० के अवसान से अखण्ड भारत की पृष्ठभूमि का निर्माण
महान स्वतंत्रता सेनानी महर्षि अरविन्द व युग-ऋषि श्रीराम शर्मा
आचार्य ने जो कह रखा है कि “भारत का पुनरुत्त्थान महकाल का अटल निश्चय
है” सो उन दोनों भविष्यद्रष्टाओं द्वारा पूर्वघोषित समय के साथ-साथ
चरितार्थ होता हुआ दिख रहा है । धारा ३७० का निरस्तीकरण और जम्मू-कश्मीर
का पुनर्गठन महज एक सियासी घटना भर नहीं है , अपितु भारत के अखण्ड स्वरुप
ग्रहण करने की पूर्व-पीठिका निर्मित करने वाली एक परिघटना भी है । ज्ञात
हो कि स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय रहने के पश्चात अलौकिक मार्गदर्शक
सत्ता के निर्देशानुसार आध्यात्मिक तप के ताप से भारत की राष्ट्रीय चेतना
को जगाने-तपाने-झकझोरने का सूक्ष्म सरंजाम खडा करने में प्रवृत हुए
ऋषिद्वय वर्षों पूर्व ही भारत की भवितव्यता को अभिव्यक्त कर गए हैं कि
“ वैचारिक अवांछनीयताएं जब अनर्थ की सीमा लाँघ जाएंगी, तो आत्मबल-सम्पन्न
व्यक्तियों के बीच ‘सुपरचेतन सत्ता’ का प्रादुर्भाव होगा, जो उल्टे को
उलट कर सीधा कर देगा” । इसका समय भी रेखांकित करते हुए उनने कह रखा है- “
रामकृष्ण परमहंस के जन्म से लेकर १७५ साल तक की अवधि संधिकाल है, जिसके
दौरान भारत को कई अवांछनीयतायें झेलनी पड सकती हैं ; किन्तु इस अवधि के
बीतते ही भारत के भाग्य का सूर्योदय सुनिश्चित है , जिसके साथ ही इसकी
सोयी हुई राष्ट्रीयता जाग जाएगी और बीतते समय के साथ भारत अपनी
आध्यात्मिक समग्रता से सारी दुनिया पर छा जाएगा ” । देश को विभाजन की
पीडादायी त्रासदी के साथ मिली तथाकथित स्वतंत्रता पर प्रतिक्रिया जताते
हुए १५ अगस्त १९४७ को राष्ट्र के नाम प्रसारित संदेश में महर्षि अरविन्द
ने कहा था- “ भारत का विभाजन एक न एक दिन अवश्य मिट जाएगा और यह
राष्ट्र फिर से अपने अखण्ड स्वरुप को धारण कर लेगा” । युग-परिवर्तन के
निमित्त अध्यात्मिक-वैचारिक आन्दोलन का सूत्रपात करने के कारण युगऋषि कहे
गए श्रीराम शर्मा आचार्य ने अपनी अनेक पुस्तकों में लिखा हुआ है-
“ अवांछनीयताओं का उन्मूलन हो कर रहेगा , यह महाकाल की योजना है , इसे
कोई टाल नहीं सकता । असत्य-अनीति-अन्याय-झूठ-पाखण्ड पर आधारित समस्त
स्थापनायें-व्यवस्थायें भरभरा कर गिर जाएंगीं, दुर्जन-शक्तियों को मुंह
की खानी पडेगी और सज्जन शक्तियों के संगठन से
सत्य-नीति-न्याय-विवेक-सम्पन्न व्यवस्थायें खडी होंगीं । २१वीं सदी से
युग-परिवर्तन की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी और वर्ष २०११ से परिवर्तन
स्पष्ट दिखाई पडने लगेगा । भारत इस विश्वव्यापी परिवर्तनकारी योजना के
क्रियान्वयन का ध्रूव-केन्द्र होगा ” ।
इन दिनों अपने देश में बदलाव की बह रही हवा के परिप्रेक्ष्य में
उपरोक्त ऋषिद्वय के अनुसार भारत को चूंकि भावी विश्व का नेतृत्व करना है
और सनातन धर्म से ही विश्व-वसुधा का कल्याण सम्भव है, इसलिए परिवर्तन की
शुरुआत सनातनधर्मी भारत से हो रही है और राजनीति चूंकि समस्त समस्याओं की
जड है, इस कारण पहला प्रहार राजनीति पर ही हो रहा है ; ठीक उसी समय से जब
रामकृष्ण परमहंस के जन्म-काल सन १८३६ से ले कर १७५ साल का संधिकाल २०११
में समाप्त हुआ, जो युग-ऋषि श्रीराम शर्मा का जन्मशताब्दी वर्ष था ।
सन २०११ से देश भर में भडक उठे कांग्रेस-विरोधी आन्दोलनो के
परिणामस्वरुप सन २०१४ में प्रचण्ड बहुमत से एक अप्रत्याशित व्यक्तित्व
नरेन्द्र मोदी का सत्तासीन होना एवं राजनीतिक अनीति-अनाचारपूर्ण
धर्मनिरपेक्षता के थोथे पाखण्ड का धराशायी होना तथा उसके बाद से एक पर एक
असम्भव सी प्रतीत होने वाली घटनाओं का घटित होना ; यथा- भारत की
योग-विद्या को वैश्विक मान्यता मिलना, विश्व राजनीति में भारत की पैठ
बढना, पाकिस्तान में बलुचिस्तान का आन्दोलन भडकना, इस्लामी अरबिया देशों
में सनातनधर्मी मन्दिरों का निर्माण होना व अपने देश में राम-जन्मभूमि
मामले की प्रतिकूलतायें दूर होते जाना और फिर दुबारा प्रचण्ड बहुमत से
हिन्दुत्ववादी भाजपा-मोदी की सत्ता कायम होना एवं उसके द्वारा तीन-तलाक
निरस्तीकरण के तौर पर राष्ट्रीय एकात्मता की दिशा में सरकारी कदम उठना,
राजनीतिक प्रदूषण फैलाते रहने वाले तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों का सफाया
होते जाना तथा भारतीय सनातन परम्पराओं के विरोधी वामपंथी दलों का
अस्तित्व मिटते जाना आदि ऐसे संकेत हैं , जो यह बताते हैं कि नियति का
परिवर्तन-चक्र सचमुच ही नियत समय से शुरू हो चुका है ।
किन्तु जिस जम्मू-कश्मीर से धारा ३७० का हटना आम तौर पर देश की
जनता को ही नहीं, जन-प्रतिनिधियों को भी असम्भव सा प्रतीत होता रहा था,
उसे उस अनर्थकारी प्रावधान से मुक्त कर अब नये सिरे से उसका शासनिक
पुनर्गठन किया जा रहा है । भारत का मणि-मुकुट कहे जाने वाले उस प्रदेश की
सत्ता को अपनी बपौती जागिर मान आसुरी कहर बरपाते हुए सनातनधर्मी जनता को
प्रताडित-विस्थापित कर वहां के ‘नन्दन वन’ से सुशोभित उस दिव्य धरा पर
जिहादी-बारुदी खुनी खेल खेलते रहने वाले और स्वयं को अजेय समझने वाले
अब्दुल्लाओं-सईदों को अब जेलों के भीतर अपने जुल्मों की खतायें गिननी पड
रही हैं , तो इसे आप क्या कहेंगे ? यह नियति की उस नीयत के क्रियान्वयन
का एक चरण है , जिसके तहत भारत का पुनरुत्थान होना है, भारत को अपना
अखण्ड स्वरुप धारण करना है । वेदों की ऋचायें रचने वाले ऋषियों की जिन
संततियों-पण्डितों को आसुरी आतंक से पीडित-प्रताडित हो कर
निष्कासन-विस्थापन का दंश झेलना पडा था, उनके पुनर्प्रतिष्ठापन का चरण ही
नहीं है भारत-सरकार का यह उद्यम ; बल्कि कश्मीर के जिस भूभाग पर
पाकिस्तान का अवैध कब्जा कायम है उसे भी ध्वस्त कर देने और वहां भारत का
राष्ट्र-ध्वज फहराने का एक उपक्रम है यह कदम । जाहिर है, अब आने वाले
दिनों में उस पाक-अधिकृत कश्मीर को भारतीय सेना जब अंगीकृत करने लगेगी,
तब जंग जरूर छिडेगी और उसका परिणाम कदाचित महर्षि अरविन्द के शब्दों में
‘अखण्ड भारत का पुनर्निर्माण” ही होगा । ऐसी सम्भावना से इंकार नहीं किया
सकता है, क्योंकि वह भू-भाग आखिर है तो भारत का ही भाग, जो महाराजा हरि
सिंह द्वारा सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर रियासत का भारत संघ में अधिमिलन कर
देने की विधिक प्रक्रिया से अंगीकृत हुआ था । युएनओ० भी आखिर क्या करेगा
? कितने दिनों तक उस पर पाकिस्तान का अबैध कब्जा रहने देगा ? भारत के
शासन का शौर्य जब इसी तरह से मचल पडेगा, जो अवश्यम्भावी है ; तब वह भी
हाथ खडे कर देने पर विवश हो जाएगा तो फिर कोई नियंत्रण रेखा नहीं होगी और
न ही यथास्थितिवाद की पुनरावृति होगी । क्योंकि, भारत राष्ट्र अब करवट ले
रहा है, अपना वास्तविक आकार ग्रहण करने को मचल रहा है । अतएव, भारत को
टुकडे-टुकडे करने का नारा लगाने वाले गिरोहों एवं राष्ट्र-द्रोह कानून को
समाप्त कर देने की वकालत करने वाली कांग्रेस, कांफ्रेन्स आदि
सेक्युलर-कम्युनिष्ट दलों को सावधान हो जाना चाहिए , क्योंकि
भारत-पुनरुत्थान के मार्ग में जो भी तत्व बाधक बनेंगे, वे मिट जाएंगे ,
राजनीति के परिदृश्य से लुप्त हो जाएंगे । भारत का पुनरुत्थान अब हो कर
रहेगा । यह ऋषियों की योजना-घोषणा है, और जैसी कि सनातन मान्यता है-
ऋषियों के वचन कभी खाली नहीं जाते, उसे भगवान पूरा करते हैं । भाजपा-मोदी
की केन्द्र सरकार द्वारा धारा ३७० हटाने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर को अब
नये सिरे से पुनर्गठन करने और वहां के प्रशासन को सीधे केन्द्रीय सत्ता
से संचलित करने का अप्रत्याशित निर्णय लेना वास्तव में भगवत-प्रेरणा का
ही परिणाम है ।
• अगस्त’ २०१९
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