कॉरोना-संकट में धर्म और मजहब का हिसाब-किताब

कॉरोना-संकट में धर्म और मजहब का हिसाब-किताब
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कॉरोना-संक्रमण के विस्तार को रोकने के लिए अपने देश में सरकारी तौर पर पूर्ण विराम (लॉक डाउन) लगा हुआ है . एक प्रकार की आपात स्थिति देश भर में कायम है . पूरा शासन तंत्र कॉरोना से संक्रमित लोगों की खोजबीन कर जांच-पडताल करने एवं संक्रमितों को चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध कराने से ले कर आम जनता को उनके घरों में ही सारी सुविधायें मुहैय्या करने में परेशान है . तब ऐसे में ‘तब्लीगी जमात’ नामक मुस्लिम संगठन के लोगों व मौलानाओं द्वारा मस्जीदों में लुक-छिप कर योजनापूर्वक देश भर में कॉरोना फैलाने तथा पकडे जाने पर हमलावर हो जाने और जांच व ईलाज करने वाले चिकित्साकर्मियों पर थूकने की घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में मीडिया के बुद्धिबाजों द्वारा अब यह कहा जाने लगा है कि कॉरोना के खिलाफ जंग जीतने में धर्म आडे आ रहा है . धर्म बाधक बना हुआ है । ऐसे बुद्धिबाजों की बुद्धि पर तरस आती है ; क्योंकि उन्हें या तो धर्म और मजहब की समझ नहीं है . या वे इतने शातिर हैं कि जानबूझ कर मजहब की गन्दगी को धर्म के माथे पर पोत कर समाज को दिग्भ्रमित कर रहे हैं । दोनों ही स्थिति में वे दया के पात्र हैं क्योंकि उन्हें इतनी भी समझ नहीं है कि वे क्या कह रहे हैं ? तो बन्धुओं आज के मेरे व्याख्यान का विषय यही है- धर्म व मजहब का अन्तर स्पष्ट करना और इन बुद्धिबाजों को यह बताना दिखाना कि ‘कॉरोना संकट’ के इस दौर में राष्ट्र के साथ धर्म ही खडा है . धर्म कहीं से भी किसी भी तरह से बाधक नहीं है । बाधक बन कर तो मजहब इसके पीछे पडा है । तो आइए पहले धर्म को समझिए-
शास्त्रों-ग्रन्थों में न जा कर सीधे-सीधे व्यावहारिक बात करते हैं तो पाते हैं कि ‘जो धारण करने योग्य है वह धर्म है’ जो आचार-विचार कर्म-कर्त्तव्य रीति नीति अर्थात जीवन जीने की जो पद्धति धारण करने योग्य है सो धर्म है । अब देखना यह है कि धारण करने योग्य क्या है. कौन सी जीवन-पद्धति धारण करने योग्य है ? जाहिर है- जिसे धारण करने से हमारा-आपका यानि मनुष्य का कल्याण हो वही धारण करने योग्य है । मनुष्य का कल्याण कैसे सम्भव है तो समस्त विश्व वसुधा के कल्याण से सम्भव है ; क्योंकि धरती पर केवल मनुष्य मात्र के रहने से मनुष्य का कल्याण कतई नहीं हो सकता । धरती पर अन्य प्राणी वनस्पति प्रकृति व सृष्टि के रहने से ही मनुष्य का कल्याण सम्भव है । तो इसका मतलब यह हुआ कि जिस जीवन-पद्धति से मनुष्य और मनुष्येत्तर प्राणियों सहित समस्त विश्व-वसुधा का कल्यांण हो वही धारण करने योग्य है और इस कारण वही जीवन-पद्धति धर्म है । वह जीवन पद्धति सनातन है अर्थात सृष्टि को रचने वाले स्रष्टा के द्वारा निर्धारित है. किसी व्यक्ति के द्वारा नहीं । इसे आप ऐसे समझिए । मनुष्य के द्वारा बनायी हुई किसी भी चीज को जैसे कि टी०वी० फ्रीज कुलर मोटर गाडी को आप जब लेते हैं तब उसके साथ आपको उसे संचालित करने वाले तकनीक से सम्बन्धी जानकारियों की एक पुस्तिका भी मिलती है जिसमें आपको उसके एक-एक पाट-पुर्जों की जानकारी दी हुई होती है कि यह कैसे-कैसे काम काम करता है. इसकी बनावट कैसी है. कैसे इसे चलाना है. कैसे चलाने पर यह खराब नहीं होगा तथा कैसे चलाने से यह खराब हो सकता है और ख्रराब हो जाने पर यह कैसे ठीक हो सकता है आदि-आदि । उसी तरह से इस सृष्टि को रचने वाले स्रष्टा ने भी सृष्टि की समस्त बारिकियों को इसके एक-एक तत्व- मिट्टी जल वायु अग्नि आकाश अंतरिक्ष नदी पर्वत वनस्पति जीव आत्मा-परमात्मा को बताते-समझाते हुए इस विराट सृष्टि के अनुकूल जीवन जीने की कला. जीवन जीने की रीति-नीति-पद्धति निर्धारित कर मनुष्य को वेदों के माध्यम से बता दिया है । वेद अनादि हैं मानव-रचित नहीं हैं । वेदों में किसी व्यक्ति के जीवन-मरण की कोई कथा-कहानी नहीं है अपितु वेद सृष्टि के रहस्यों को उद्घाटित करने वाले ज्ञान हैं. सृष्टि के साथ सामन्जस्य स्थापित कर जीवन जीने की ऐसी रीति-नीति-पद्धति बताने वाले ज्ञान हैं. जिनके अनुसरण से मनुष्य का और सृष्टि का दोनों का कल्याण सुनिश्चित है । सृष्टि के समस्त ज्ञान-विज्ञान वेदों में समाहित हैं । तो वेदों के अनुसार यह समपूर्ण सृष्टि स्रष्टा का ही विराट रुप है अर्थात ब्रह्म-स्वरुप है । मनुष्य सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी अवश्य है. किन्तु सृष्टि का स्वामी नहीं है बल्कि एक मामूलि घटक मात्र है- व्यष्टि मात्र है । व्यष्टि का परिवेश अर्थात आस-पास का वातावरण व जीव-जगत समष्टि है. समष्टि का व्यापक विस्तार परमेष्टि है और परमेष्टि का विस्तार सृष्टि है । सृष्टि को ब्रह्म-स्वरुप देखते-समझते हुए और उसके समस्त घटकों के सह-अस्तित्व को स्वीकार करते हुए सर्वकल्याण्कारी आचार-विचार से युक्त जीवन जीने की रीति-नीति व तदनुसार आचार-व्यवहार व कर्त्तव्य से युक्त जीवन-पद्धति का नाम धर्म है जो सृष्टि रचने वाले ब्रह्म से ही निःसृत है. किसी व्यक्ति से निर्मित नहीं है । इस जीवन-पद्धति में सृष्टि के सभी प्रमुख तत्वों- पृथ्वी आकाश अंतरीक्ष हवा पानी नदी पर्वत वनस्पति से ले कर चिंटी चूहा सर्प गाय बैल घोडा हाथी पर्यन्त समस्त जीव-जगत का सह-अस्तित्व देवी-देवता के रुप में स्वीकृत व पूजित है । विरोधी मनुष्य के प्रति भी घृणा व हिंसक जीव की भी हिंसा निषिद्ध है और सम्पूर्ण विश्व-वसुधा की समस्त समष्टि-परमेष्टि को एक ही कुटुम्ब समझा गया है- वसुधैव कुटुम्बकम ! तो जाहिर है यह जीवन-पद्धति ही धर्म है क्योंकि इससे मनुष्य और मनुष्येत्तर प्राणियों सहित समस्त सृष्टि का कल्याण होना और किसी का भी नुकसान कतई नही होना सुनिश्चित है । इसका अनुकरण करना ही धार्मिकता है और इसके अनुसार जीवन जीने वाले मनुष्य ही धार्मिक हैं । धर्म के दस लक्षण हैं- धृति क्षमा दम अस्तेय शौच इन्द्रीय निग्रह धी विद्या सत्य अक्रोध । धर्म वस्तुतः करने योग्य कर्मों अर्थात कर्त्तव्यों का समुच्चय है जो व्यक्ति और काल के सापेक्ष है । इसी कारण सनातन जीवन पद्धति में राजा के कर्त्तव्य को ‘राज धर्म’ पिता के कर्त्तव्य को ‘पितृ धर्म’ तथा राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य को ‘राष्ट्रधर्म’ और आपदकाल में किये जाने वाले कर्त्तव्य को ‘आपदधर्म’ कहा गया है । सभी धार्मिक लोग इसी धार्मिकता के कारण कॉरोना संकट के इस दौर में आपद धर्म व राष्ट्रधर्म का निर्वाह पूरी निष्ठा से कर रहे हैं- राजसत्ता के हर आदेश का पालन तो कर ही रहे हैं. राजकोष में धन का सहयोग भी दे रहे हैं । स्पष्ट है कि कॉरोना से जुझने में धर्म कहीं से भी बाधक नहीं है. बल्कि धर्म ही सहायक है ।
अब आइए देखिए कि इस आपदकाल में इस महामारी के विरुद्ध हमारी लडाई में बाधायें खडी करने वाले कौन लोग हैं । वे लोग हैं जो धार्मिक नहीं. अधार्मिक व मजहबी हैं । धर्म से उलट आचरण अधर्म है और अधार्मिकता का समुच्चय ही मजहब है । मजहब सृष्टि को ब्रह्मस्वरुप के बजाय किसी अब्रह्म अर्थात अब्राहम की कायनात और मनुष्य को किसी एडम या आदम की औलाद बताते हुए समस्त मनुष्येत्तर प्राणियों सहित सम्पूर्ण सृष्टि को सिर्फ आदमी के भोग-उपभोग की वस्तु मान प्रकृति के विरुद्ध शत्रुवत व्यवहार सिखाता है । इतना ही नहीं अभक्ष्य भक्षण को भी जायज ठहराने वाला यह मजहब तो मनुष्य-मनुष्य के बीच भी शत्रुवत विभाजन कर रखा है । मजहब की मान्यता है कि धार्मिक मनुष्य काफिर हैं. जिन्हें तलवार से बम बारूद से या कॉरोना जैसी बीमारी से अथवा किसी भी तरह से मार डालना फर्ज है तथा इस फर्ज का पालन करना जेहाद है और ऐसा करने वाले को जन्नत की प्राप्ति होती है । इन मजहबियों को हांकने वालों ने अपनी कुत्सित मंशा को अंजाम देने के लिए धर्म की दो चार बातों को जैसे–तैसे खींच-तान कर उनमें अपनी कुत्सित मान्यताओं के निहितार्थों की मिलावट कर एक अदद किताब भी रच रखा है जिसे वे अहले आसमानी किताब कहते हैं तथा उसमें वर्णित बे-सिर पैर की बातों के अनुसार जीवन जीते हुए उस जीवन-पद्धति को सबके ऊपर थोपना चह्ते हैं और पूरी दुनिया को अपने मजहबी रंग में रंग देने को उद्धत हैं । इसके लिए वे गैर-मजहबियों की आबादी मिटाने और अजहब-परस्तों की आबादी बढाने का खुलेआम एलान कर इसी योजना के तहत भारत भर में कॉरोना फैलाने के विभिन्न हथकण्डों को अंजाम देते फिर रहे हैं; तो इसे आप यह कैसे कह सकते हैं कि कॉरोना से छिडी लडाई को धर्म कमजोर कर रहा है । भाई धर्म ही तो इस महामारी से मानवता को बचाने की लडाई लड रहा है । इस लडाई को कमजोर तो इस मजहब के द्वारा किया जा रहा है । दरअसल मजहब एवं रिलीजन को ही धर्म कहने व समझाने का एक वामपंथी षड्यंत्र जो अंग्रेजी शिक्षा के सहारे वर्षों से चल रहा है इस देश में. उसी का यह परिणाम है कि प्रबुद्ध लोग भी इस झांसे में आ कर मजहब को धर्म कहने लगे हैं. जिससे धार्मिकता के प्रति भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।
• अप्रेल’ २०२०